Darul Uloom Deoband Photos in Hindi : Darul Uloom Deoband एक अरबी मदरसा है जिस मदरसे में अरबी यानी कुरान की शिक्षा दी जाती है। Darul Ulloom Deoband की स्थापना 1866 मे मौलाना कासिम नानोत्वी ने देयोबंद में एक छोटी सी मस्जिद से हुवि थी। इस्लाम धार्मिक किताब कुरान को याद क्या जाता है और कुरान को पढ़ाना सिखाया जाता है। Darul Uloom Deoband भारत का सब से बड़ा और सब से पहला मदरसा है। जिस समय भारत में अंग्रेजों का राज था तो अंग्रेजों ने मुस्लिम गुरुओं को खत्म करना शुरू कर दिया था, उस समय पर इस्लाम धर्म को बचाने के लिए मदरसे की स्थापना की गई थी।
Darul Uloom Deoband वेबसाइट पर फतवा देने से संबंधित कर्मचारी नाम और कोड
Fatwa Kise Kahte hai : Darul Uloom Deoband एक इस्लामिक मदरसा है जिस के कारण इस्लाम से संबंधित सभी जानकारी वहां पर मिल जाती है,फतवा ये शब्द अरबी है इसका मतलब होता है कि कोई भी इस्लामिक ,शरीयत के मुताबिक मोतेबर मुफ्ती से राय ले सकता अपने निजी जीवन में।
Darul Uloom Deoband ने Fatwa नाम से एक विभाग शुरू किया है. उस विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों के नाम होते हैं, यह विभाग वेबसाइट पर फतवा प्रकाशित करता है।
Name | Designation | Code |
Mufti Habibur Rahman | Mufti | B |
Mufti Zafeeruddin | Mufti | J |
Mufti Mahmood Hasan Buland Shahri | Mufti | H |
Mufti Zainul Islam | Mufti | D |
Mufti Fakhrul Islam | Mufti | L |
Mufti Waqar Ali | Mufti | M |
Mufti Muhammad No’man, Assistant | Mufti | N |
Mufti Muhammad Mus’ab, Assistant | Mufti | SD |
Mufti Muhammad Asadullah, Assistant | Mufti | SN |
Darul Uloom Deoband भारत में सब बड़ा अरबी मदरसा है , इस मदरसे ने भारत को बड़े बड़े नेता दिए जिस में देश के पहले गरे मंत्री उबेद उल्लाह सिंधी Darul Uloom Deoband के ही छात्र थे। पर्सनल लॉ के पहले जनरल सेक्रेटरी मिन्नतुलला रहमानी दारुल उलूम देवबंद के ही छात्र थे। बिस्वी शताब्दी के जियादातर नेता इसी मदरसे से प्रभावित थे। देवबंद के ही छात्र ने अंग्रेजों के खिलाफ शामली में जंग लड़ी थी, इस जंग के अगवाई इमदादुल्ल मुहाजिर मक्की कर रहे थे। अंग्रेजो के खिलाफ फतवा देने वाले इसी Deoband के ही मौलाना थे,
भारत की आजादी में Darul Uloom Deoband का योगदान
दारुल उलूम देवबंद ने भारत की आजादी के लिए बहुत सी कुर्बानी दी है, ईस मदरसे ने इतने क्रांतिकारी पैदाकिए कि अंग्रेज गवर्नर सर जॉन इस्त्रेची ने 1875 को ईस मदरसे की जांच केआदेश दे दिए। अंग्रेजों को ये डर था कि उनकी सल्तनत खतरे में न पड़ जाए। इस मदरसे की अहमियत इस बात से लड़ी जा सकती है कि सर जॉन चोमर ने यहतक कहादिया के इतना अच्छा स्कूल तो मैंने इंग्लैंड में भी नहीं देखा,इस मदरसे के पहले छात्र मौलाना उबेदुल्ला सिंधी ने रेशमी रुमाल आंदोलन चलाया। सुबास चंद्र बॉस के साथ पहली एस्थै थल सेना बनाया इसी मदरसे के छात्र थे। भारत अंग्रेजों के राज में अंग्रेजों ने कहा कि इस मदरसे को अगर बंद नहीं किया तो हमारी सरकार खतरे में पड़ जाएगी।
Darul Uloom Deoband Library
कोई सवाल करना चाहता है तो संपर्क करें
अगर आप कोई सवाल करना चाहते हैं तो जीमेल से संपर्क करें। अगर आप कोई सवाल करना चाहते हैं तो जीमेल से संपर्क करें , दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर आप को कुछ इस्लामिक मसलों के बारे में पूछना चाहिए है तो नीचे दिए गए जी मेल से राब्ता कर सकते हैं, इस्लामिक बच्चों के नाम के बारे में पुछना चाहते तो अपनी मस्जिद के इमाम से पुछ कह सकते हैं, ऐसे सवाल पूछ सकते हैं जिसका आपको जवाब नहीं मिल रहा है।
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